माता पिता के अधिकार
माता पिता का आदर एक प्राथमिक और पवित्र कर्तव्य है। यदि आप अपने माता पिता का सम्मान नहीं करते तो आप ईश्वर की अवज्ञा करते हैं वे जो अपने माता पिता से बुरा व्यवहार करते हैं दूसरों द्वारा बुरे व्यवहार के पात्र बन जाते हैं।
गर्भावस्था से ही बच्चा माता पिता की जिम्मेदारी बन जाता है। माता पिता का बच्चे से जुड़ाव और संवेदना का अनुमान नहीं लगाया जा सकता और ना ही उन तकलीफों और कठिनाईयों का जो उन्होंने उठाई है उसका अनुमान लगाया जा सकता है। इसी कारण माता पिता का सम्मान मानव कृतज्ञता का ऋण ही नहीं एक धार्मिक कर्तव्य भी है।
वे जो अपने माता पिता को महत्व देते हैं और ईश्वरीय दया प्राप्त करने का जरिया समझते हैं वे दोनों दुनिया में सबसे समृद्ध होते हैं। वे जो माता पिता को बोझ समझते है और उनसे परेशान हो जाते हैं वे निश्चित रूप से जीवन में कठिनाईयों का सामना करते हैं।
आप जितना अपने माता पिता का आदर करते हैं उतना ही अपने सृजनकर्ता के सामने आदर और श्रद्धा का अनुभव करते हैं। यदि आप अपने माता पिता का सम्मान नहीं करते अर्थात आपको ईश्वर का भय और उसके प्रति श्रद्धा नहीं है। फिर भी आज के समय में एक कौतूहल ये है कि जो ईश्वर का अनादर करते हैं और जो ईश्वर से प्रेम करने का दावा करते हैं दोनों ही अपने माता पिता की अवज्ञा करते हैं।
बच्चे को अपने माता पिता का अधिक से अधिक सम्मान करना चाहिए। मात पिता को भी अपने बच्चों की नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा को भी उतना ही महत्व देना चाहिए जितना वे उसकी शारीरिक वृद्धि और स्वास्थ्य को देते हैं। और उनके लिए अच्छे से अच्छा शिक्षक और मार्गदर्शक की व्यवस्था करनी चाहिए। कैसे लापरवाह है वे माता पिता जो अपने बच्चों की नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा पर ध्यान नहीं देते और कितने दुर्भाग्यशाली है वे बच्चे जो उपेक्षा का शिकार होते हैं?
बच्चे जो अपने माता पिता के अधिकारों के बारे में नहीं सोचते और उनकी अवज्ञा करते हैं वे मनुष्य के पतन से उत्पन्न हुए दानवप है। माता पिता जो अपने बच्चों की नैतिक और आध्यात्मिक कल्याण की रक्षा नहीं करते वे भी दयाहीन और क्रूर हैं। वे माता पिता और भी पशु समान और निर्दयी है जो अपने मानवीय पूर्णता की ओर बढ़ते हुए बच्चों के नैतिक और आध्यात्मिक विकास को रोक देते हैं।
परिवार समाज की नींव है। परिवार में एक दूसरे के अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सम्मान के परिणामस्वरूप् एक स्वस्थ और सुदृढ़ समाज का निर्माण होता है। जब ऐसे पारिवारिक संबंध खत्म हो जाते हैं तो समाज दूसरों के लिए संवेदना और सम्मान खो देता है।
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